भोपाल।तेल की धार - चौतरफा मार------ भूपेन्द्र गुप्ता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार पेट्रोल डीजल की कीमतों के बढ़ने से पांव पसार रही महंगाई पर चिंता जाहिर की है। भले ही इसके लिए उन्होंने राज्यों को जिन्होंने वेट टेक्स नहीं घटाया जिम्मेदार बताकर अपनी इतिश्री कर ली हो लेकिन इतना तय है कि तेल की धार और गरीबों पर मार बदस्तूर जारी है। अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में क्रूड तेल की कीमतें घट रही हैं,रूस 35 डालर प्रति बेरेल का डिस्काउंट देने तैयार है।रूस से सस्ता क्रूड खरीदने पर अमरीका को आपत्ति भी नहीं है।ब्रेंट क्रूड के दामों में भी लगभग 8 डालर की कमी आई है मगर इसका असर भारतीय बाजार पर नहीं दिख रहा है। हालांकि यह बार-बार  कहा जा रहा है कि पेट्रोल की कीमतें बाजार की कीमतों से जुड़ी हुई है।  नवंबर 21 में चीन द्वारा खरीदी रोक देने के कारण क्रूड ऑयल की कीमतों में 10% क्रेस हुई थी जिसके कारण सरकार ने एक्साइज ड्यूटी कम करने के नाम पर कीमतें घटा दी थीं जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें घटने का ही यह असर था।भारत अपनी जरूरतों का लगभग 23% क्रूड खुद ही पैदा करता है। उसमें भी नीति यह है कि 50% खनिज तेल बेचकर अर्जित मुनाफे से कीमतों को संतुलित किया जावे। इस नीति के बावजूद यह समझ से परे है कि हमारी तेल कंपनियां निरंतर राष्ट्रीय उत्पादन को क्यों घटाती चली जा रही हैं ।देश की तेल जरूरतें पूरी करने के लिए भारतीय स्रोतों से 2013 में लगभग 38 मिलियन मीट्रिक टन का उत्पादन होता था जो 2020 में घटकर 30 मिलियन मीट्रिक टन हो गया है ।जो लगभग नियमित उत्पादन से 22फीसद कम है। 
भारत की पंच रत्न कंपनी ओएनजीसी विश्व में अपना अहम स्थान रखती है ।वह भारत के स्थानीय स्रोतों के अलावा  15 अन्य देशों में "ओएनजीसी विदेश" के माध्यम से खनिज तेल का उत्पादन करती है। एमआरपीएल और एचपीसीएल जैसी कंपनियां उसके स्वामित्व में हैं।ओएनजीसी फोर्ब्स की रैंकिंग में विश्व की 500 फार्च्यून कंपनियों में चौथे स्थान पर रखी जाती है जबकि प्लैट्स की रैंक में दुनिया की ढाई सौ ऊर्जा कंपनियों में वह 11 वें में स्थान पर आती है। भारत में स्ट्रैटेजिक पैट्रोलियम रिसोर्स (एसपीआर ) का खनन ही हमारी कीमतों को नियंत्रित करता है। ओएनजीसी की कमाई में रिफाइनरी का बड़ा हिस्सा है।वहअपनी स्थापित क्षमता का 91%  रिफायनिंग ओएनजीसी और उसके संयुक्त उपक्रम कंपनियां करती हैं। जबकि जामनगर स्थित रिलायंस की रिफाइनरी अपनी स्थापित क्षमता का 83% रिफाइन कर पाती है। भारत को अपनी जरूरतों के लिए लगभग 239 मिलियन टन खनिज तेल आयात करना पड़ता है जिसकी कीमत तकरीबन 77 बिलियन डालर होती है। हम अपनी जरूरतों का 14% अमेरिका से 12% सऊदी अरेबिया से और 23% इराक से आयात करते हैं। जब वैश्विक बाजार में खनिज तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव का दौर चल रहा है तब भारत में अपने घरेलू उत्पादन को लगभग 22% तक घटा दिया गया है। यह प्रश्न उत्तर मांगता है कि क्या यहओएनजीसी जो विश्व में चौथा स्थान रखने वाली कंपनी है ,को बीएसएनएल बनाने के रास्ते ले जाने की कबायद है या उसे किसी निजी हाथों को सौंपने का पूर्वाभ्यास है।
रूस ने भारत को 35 डालर डिस्काउंट पर क्रूड आयल देने की पेशकश की है। युराल (रूसी क्रूड) की खरीदी पर शिपिंग एवं मार्ग के बीमा का खर्च भी रूस उठाने तैयार है। आज की स्थितिमेंभारतपैट्रोलियम(बीपीसीएल) रूस से 2 मिलियन बैरल क्रूड आयात करता है ।कोची रिफायनरी लगभग 3लाख बैरल, बैंगलोर रिफायनरी 10 लाख बैरल तथा निजी रिफाइनरी नायरा 18लाख बैरल ट्रैफिगुरा ट्रेडर के माध्यम से रूस से 89 डॉलर प्रति बैरल में क्रूड आयल खरीद रहे हैं जबकि अमरीका और ओपेक बाजारों में यह लगभग 108 डालर प्रति बैरल है। भारत के लिए यह समझने योग्य बात है कि ऐसी अवस्था में हमारा क्रूड आयात जो 158 मिलियन मीट्रिक टन था वह बढ़कर 227 मिलियन मीट्रिक टन क्यों हो गया है? संभव है इसमें घरेलू खपत भी बढ़ी हो।किंतु उसी समय हमारा घरेलू उत्पादन जो लगभग 38 मिलियन टन था वह घटकर 30 मिलियन टन क्यों पहुंचा दिया गया है। हमारा खपत डेफिसिट 3.4 मिलियन बैरल प्रति दिन है जबकि आयात 4.25 मिलियन बैरेल प्रति दिन हो रहा है।ओएनजीसी जो भारत का 70% क्रूड उत्पादित करती है की नेट बर्थ 2 ट्रिलियन रुपये है जबकि उसके सितंबर तिमाही का मुनाफा ही 18 हजार 347 करोड़ रुपये है।साल में 70-75हजार करोड़ मुनाफा कमाने वाली कंपनी को विनिवेश की राह पर ले जाने के लिये क्या उसका उत्पादन घट रहा है और आयात बढ़ रहा है या कोई अन्य तकनीकि कारण हैं जो आम भारतीय जाऩा चाहता है? फिलहाल तो तेल की धार की चौतरफा मार से पूरा बाजार और गरीब थर थर कांप रहा है।
भूपेन्द्र गुप्ता पूर्व ओ एस डी एवं कांग्रेस मीडिया विभाग उपाध्यक्ष भोपाल।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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